Friday 18 January 2019

जिंदगी के नाम दो कवितायें



जिंदगी--एक


जिंदगी......

क्या है ये पहेली....?
पकड़ना चाहू,
तो हाथ ना आये....
छोड़ना चाहू,
तो पीछे पड़ जाये....
सोचू.....
आज खुल के मुस्कुराऊ
तो आँखों मे आँसू लाये.....
जब कभी गुमसुम बैठ जाऊ,
तो हँसाके चली जाये....
अपना मानू,
एक-एक रंग,
तो बेरंग सी सामने आये.....
छोड़ के सारे रंग,
उदासी की सफेद चादर
ओढ़कर....
चुपचाप बैठना चाहू,
तो.....
चारों और से,
रंगों की ....
बरसात हो जाये....
कभी हँसाती,
कभी रुलाती,
ये जिंदगी.....
हैं क्या ये पहेली.....?
मैफिलों की चाहत हो,
तो तन्हाई मिले.....
लोगों से भागना चाहू,
अकेले,खुदसे मिलने की,
बाते करने की
चाहत हो......
तो....
अचानक....
लोगों की भीड़ जमा हो जाये....
कभी....
जलते चिरागों से भी
रोशनी.....
अंधियारी सी लगे..
तो कभी....
काली रातों में,
चांदनी सुहानी लगे.....
क्या पाना है......?
क्या पाया है.....?
इसका हिसाब ना लगे.....
और कभी.....
सबकुछ खोकर भी
झोली भरी सी लगे.....
जिंदगी....
सच मे,
एक अबूझ पहेली है....
दिल से हँस के जी जाए
तो एक सहेली है,
रो के गवाई जाये
तो एक सजा है....!!!!


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जिंदगी--दो

जिंदगी.......

तू संग है,
तो....
सावन की रिमझीम
बारिश है.....
सितारों का मेला,
मेले में सजी महफ़िल है...
झरनों से बहता संगीत है.....
धड़कन में छुपी प्रीत है....
पंछीयोंकी प्यारी किलबिल है....
फूलों पर चमकती शबनम है....
जिंदगी,
सच कहें तो....
तुम हो.....जिंदगी
सारे जहाँ में,
तुम्हे देखती रही....
फूलों में
चाँद सितारों में
महकते नजरों में
हर एक जर्रे जर्रे में.....
मगर....
सच तो ये है
की....
तुझमे मेरा सारा जहाँ है....
मेरी जान का बसेरा है....!!!



1 comment:

Unknown said...

A true and heart touching poem.

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