Sunday 21 October 2018

आँसू


लब की हँसी मैं सबको दिखा दूँ
आँसू आँखों के मगर किसमे छुपा दूँ.......

माँगा था मैंने रबसे मेरा कोई अपना
उसने ना सुन लिया मेरा ये कहना
देखा था जो मैंने ,टूटा वो हसी सपना
अधूरे सपने को मैं फिरसे सजा दूँ
टूटे सपने को मगर कैसे भुला दूँ.....

रूठे है अपने,रूठा है जग सारा
रूठ गया हमसे तो किस्मत का तारा
ऐसे में खफा है ये मन भी हमारा
दूजा कोई रूठे तो उसे पल में मना दूँ
रूठे मन को मगर कैसे मना दूँ.....

तनहाई का सागर हैं और गुम है किनारा
मैं हु अकेली , मुझे डर ने है घेरा
कोई भी नही है यहाँ मेरा सहारा
साथ जो तू दे तो नयी दुनिया बसा दूँ
मैं तो अकेली बस खुदको सजा दूँ.......!!!

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