Wednesday 10 October 2018

दस्तूर दुनिया के.....

दस्तूर दुनिया के........

जब रिश्ते नाते बिखर गए
गैरों में फिर हम चलते हैं
जब सुननेवाला कोई नही
तो खत्म कहानी करते हैं....

राह बनायी बड़े जतन से
काँटों को हटाया पल्को से
जब घर तक उनको आना ही नही
तो बंद दरवाजे करते है.....

कहने को बहारे अब भी है
रंगीन नजारे अब भी है
पर साथ न हो देनेवाला
तो चुपचाप आह भरते है.....

जी कर भी इतने बरसों में
दस्तूर न समझें दुनिया के
जब मिलता नही सुकून यहाँ
तो उस दुनिया मे चलते है......…!!!



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