कुछ दिनों से,एक दूरी सी बन गयी है.....
मुझमे और जमाने मे...
न जाने ये कौनसी लकीर है...
किसने खींची,
कब खींची....
और क्यों.....
जमाने के साथ तो हूँ
पर,
फिर भी.....
अंजनासा सफर लगता है
ये साथ....
रेल की उन दो पटरियों की तरह है
जो साथ-साथ चलती है
फिरभी साथ नही होती....
मैं भी
सबके साथ हूँ
हर पल.....
हर लम्हा....
पर अजनबी की तरह.....
ये जहाँ...
मेरा है भी और नही भी....
कुछ कुछ मेरा लगता है
तो कभी कुछ पराया
कुछ साँये संभाले तो है
पर वो भी.....
चुभते है....
रिश्तों के बिखरे टूटे शीशे
चुभते है तो,
अब दर्द भी नहीं होता
नाही खून निकलता है
बस....
दिल मे कुछ हलचल होती है....
यादोंके कुछ पत्ते
दिल की जमीं पर बिखरते है....
मैं सिमटती हुँ.......
एक एक पत्ता
और.....
फिर चल पड़ती हुँ.....
मुझमे और जमाने मे...
न जाने ये कौनसी लकीर है...
किसने खींची,
कब खींची....
और क्यों.....
जमाने के साथ तो हूँ
पर,
फिर भी.....
अंजनासा सफर लगता है
ये साथ....
रेल की उन दो पटरियों की तरह है
जो साथ-साथ चलती है
फिरभी साथ नही होती....
मैं भी
सबके साथ हूँ
हर पल.....
हर लम्हा....
पर अजनबी की तरह.....
ये जहाँ...
मेरा है भी और नही भी....
कुछ कुछ मेरा लगता है
तो कभी कुछ पराया
कुछ साँये संभाले तो है
पर वो भी.....
चुभते है....
रिश्तों के बिखरे टूटे शीशे
चुभते है तो,
अब दर्द भी नहीं होता
नाही खून निकलता है
बस....
दिल मे कुछ हलचल होती है....
यादोंके कुछ पत्ते
दिल की जमीं पर बिखरते है....
मैं सिमटती हुँ.......
एक एक पत्ता
और.....
फिर चल पड़ती हुँ.....
10 comments:
Nice
Nice खुपच छान
Mast
Nice lines
Keep it up
Thanks
Yes,definitely
MSt
Thanks
Nice one....
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