Friday 7 December 2018

मैं सो गयीं....

तुम्हारी नींद मुझे सुलाकर
रातभर मेरे सिरहाने
बेचैन सी जागती रही..….
मैं सो गयी....
और वो मुझे तकती रही......

मेरी तकलीफे जैसे तूने संभाल ली हो
मेरी उदासी अपने अंदर पाल ली हो
कैसे मैं सो गयी....? पता नही
ये चैन कहाँ से आया ....? पता नही
मैं सो गयी.....

आहट होती तो आँख खुलने की कोशिश करती
कभी यू ही जागने की ख्वाहिश होती
पर जैसे इजाजत ही नही थी आँखों को
कुछ रोक रहा था पल्कों को
नींद खुली ही नही
मैं सो गयी....

तेरे दिल के करीब....
धड़कनों का गीत सुनते सुनते
जैसे कोई झरना गा रहा था बहते बहते
वो क्या कह रहा था....?  यही सोच रही थी
आधे अधूरे लब्जों को अहसास से जोड़ रही थी
कुछ सुनती.....इससे पहले ही
मैं सो गयी......
पर तुम्हारी नींद जागती ही रही.....!!!

No comments:

Post a Comment

गोड गोजिरं बालपण

गोड गोजिरं एक बालपण.... पावसाच्या सरीनी भिजलेलं... स्वप्न ठेऊन होडिमधे.... त्याच्यापाठी वाहणारे..... त्याला काळजी फक्त त्या होडीची, चि...